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कविता

ईश्वर के पीछे

दिनेश कुशवाह


( स्टीफन हाकिंग के लिए)

ईश्वर के अदृश्य होने के अनेक लाभ हैं
इसका सबसे अधिक फायदा
वे लोग उठाते हैं
जो हर घड़ी यह प्रचारित करते रहते हैं
कि ईश्वर हर जगह और हर वस्तु में है।

इससे सबसे अधिक ठगे जाते हैं वे लोग
जो इस बात में विश्वास करते हैं कि
भगवान हर जगह है और,
सब कुछ देख रहा है।

बुद्ध के इतने दिनों बाद
अब यह बहस बेमानी है कि
ईश्वर है या नहीं है
अगर है भी तो उसके होने से
दुनिया की बदहाली पर
तब से आज तक
कोई फर्क़ नहीं पड़ा।

यों उसके हाथ बहुत लंबे हैं
वह बिना पैर हमारे बीच चला आता है
उसकी लाठी में आवाज़ नहीं होती
अंधे की लकड़ी के नाम पर
वह बंदों के हाथ में लाठी थमा जाता है
और ईश्वर के नाम पर
धर्म युद्ध की दुहाई देते हैं
बुश से लेकर लादेन तक।

ईश्वर की सबसे बड़ी खामी यह है कि
वह समर्थ लोगों का कुछ नहीं बिगाड़ पाता
समान रूप से सर्वव्यापक सर्वशक्तिमान
प्रभु प्रेम से प्रकट होता है पर
घिनौने बलात्कारियों के आड़े नहीं आता
अपनी झूठी कसमें खाने वालों को वह
लूला-लंगड़ा-अंधा नहीं बनाता
आदिकाल से अपने नाम पर
ऊँच-नीच बनाकर रखने वालों को
सन्मति नहीं देता
उसके आस-पास
नेताओं की तरह धूर्त
छली और पाखंडी लोगों की भीड़ जमा है।

यह अपार समुद्र
जिसकी कृपा का बिंदु मात्र है
उस दयासागर की असीम कृपा से
मजे में हैं सारे अत्याचारी
दीनानाथ की दुनिया में
कीड़े-मकोड़ों की तरह
जी रहे हैं गरीब।

ईश्वर के अदृश्य होने के अनेक लाभ हैं
जैसे कोई उस पर जूता नहीं फेंकता
भृगु की तरह लात मारने का सवाल ही नहीं
उस पर कोई झुँझलाता तक नहीं
बल्कि लोग मुग्ध होते हैं कि
क्षीरसागर में लेटे-लेटे कैसी अपरंपार
लीलाएँ करता है जगत का तारनहार
दंगा-बाढ़ या सूखा के राहत शिविरों में गए बिना
मंद-मंद मुस्कराता हुआ
हजरतबल और अयोध्या में
देखता रहता है अपनी लीला।

उसकी मर्जी के बिना पत्ता तक नहीं हिलता
सारे शुभ-अशुभ भले-बुरे कार्य
भगवान की मर्जी से होते हैं
पर कोई प्रश्न नहीं उठाता कि
यह कौन-सी खिचड़ी पकाते हो दयानिधान?
चित्त भी मेरी और पट्ट भी मेरी
तुम्हारे न्याय में देर नहीं, अंधेर ही अंधेर है कृपा सिंधु।

ईश्वर के पीछे मजा मार रही है
झूठों की एक लंबी जमात
एक सनातन व्यवसाय है
ईश्वर का कारोबार।

महाविलास और भुखमरी के कगार पर
एक ही साथ खड़ी दुनिया में
आज भले न हो कोई नीत्शे
यह कहने का समय आ गया है कि
आदमी अपना ख़याल ख़ुद रखे।


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